ईश्वरीय वाणी वेदों का आर्यों अर्थात हिंदुओं को आदेश-शक्ति संचित करो और पापात्मक प्रवृतियों को नष्ट करो।

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ये है ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश

ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू समाज के सर्वोच्च मान्य धर्मग्रंथ हैं। भगवान विष्णु भी जब पृथिवी पर मानव रूप में आये तो उन्होने अपने अवतार के रूप में वेदों का अनुसरण किया। हमारे महान ऋषियों ने भी वेदों का ही अनुसरण किया व समस्त समाज को वेद अनुकूल शिक्षा दी एवं वेद अनुसार ही जीवन जीने का संदेश दिया। ईश्वरीय वाणी वेद साक्षात मोक्ष का मार्ग है और वेदों की अवज्ञा अर्थात वेदों से दूर होना व वेदों की बात ना मानना ही सम्पूर्ण कष्ट का कारण है।

ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू समाज को पापीयों एवं दुष्टों से निर्भय होकर जीवन जीने का संदेश एवं आदेश देते हैं। इस संदेश का पालन करने में ही मोक्ष है और अवज्ञा करने में ही मानव जीवन नष्ट होता है। इन आदेशों का पालन न करने वाला मनुष्य इस जन्म में कष्ट एवं अगले जन्म में मनुष्य से हीन योनी में जन्म लेता है।

ये हैं ईश्वरीय वाणी वेदो के आदेश एवं जीवन में पालन करें।

।। ॐ शक्ति ।।

मा भेर्मा सं विक्था ऊर्जधत्स्व धिषणो वीड्वी सती वीडयेथामूजं दधाथाम्।

माप्मा हतो न सोमः ॥

यजुर्वेद 9:35

भयभीत मत हो, पथ से विचलित मत हो। बल धारण कर। ये दृड़ द्यावा पृथिवी तुझे दृड़ता का पाठ पदाएं, तेरे अंदर बल धारण कराएं। हे मनुष्य, याद रख। तू पाप को नष्ट कर, आनंद और शांति के अमृत रस को नहीं, अर्थात हे मनुष्यों, तुम निर्भय होकर दृड़तापूर्वक सत्कार्यों में जुट जाओ। शक्ति संचित करो और पापात्मक प्रवृतियों को नष्ट करो।

।। ॐ शक्ति ।।

यथा द्दोश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।

एवा मे प्राण माँ बिभेः॥

अथर्ववेद 2.15.1

ओ मेरे प्राण, तू किसी से मत डर। देख ये धरती क्या किसी से डरती है? यह आकाश क्या किसी से डरता है? तू भी मत डर अर्थात तू भी दृड़ता से निर्भय होकर रह। तेरा कोई बाल बांका नहीं कर सकेगा।

।। ॐ शक्ति ।।

यथा सूर्यश्च चंद्रश्च न बिभीतो न रिष्यतः।

एवा मे प्राण मा बिभेः॥

अथर्ववेद 2.15.3

हे मेरे प्राण, जैसे सूर्य एवं चंद्रमा न डरते हैं और न नष्ट होते हैं, इसी प्रकार तू भी मत डर अर्थात हे मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी बन कर रह, डर मत।

।। ॐ शक्ति ।।

यथा भूतं च भव्यं च न बिभीतों न रिष्यतः।

एवं मे प्राण मा बिभेः॥

अथर्ववेद 2.15.6

हे मेरे प्राण, जिस प्रकार भूत और भविष्य काल न डरते हैं और न नष्ट होते हैं, उसी प्रकार तू भी मत डर।

।। ॐ शक्ति ।।

अभयं नः करत्यन्तरिक्षम भयं द्दावा पृथिवी उभे इमे।  

अभयं पश्चादभयं पुरस्तादुत्तरादधराभयं नो अस्तु॥

अथर्ववेद 19.15.5

हम अन्तरिक्ष में अभय हों, हम पृथिवी पर अभय हो। हम पीछे से व आगे से अभय हों। हम ऊपर से और नीचे से अभय हों।

।। ॐ शक्ति ।।

अभयं मित्रादभय ममित्राद् अभयं ज्ञातादभयं पुरो यः।

अभयं नक्तमभयं दिवा ना सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु॥  

अथर्ववेद 19.15.6

हम मित्र एवं शत्रु दोनों से अभय हों। हम ज्ञातों से अभय हों और जो आगे जीवन मे आने वाले हैं उनसे भी अभय हों। हम रात्रि एवं दिन में भी अभय हों और सारी दिशाएँ हमारी मित्र हों अर्थात हमारा व्यवहार ऐसा हो कि हमें चारों ओर से सहयोग मिले, कहीं से विरोध एवं क्षति पहुंचाने का हमें भय न हो। साथ ही हम उनसे सावधान रहें जो हमे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष में हानि पंहुचाना चाहते हों।

।। ॐ शक्ति ।।

jitender

लेखन-जितेंद्र खुराना

www.JitenderKhurana.com

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(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक “वेदों द्वारा सफल जीवन” से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्री पाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।

लेखन, लेख का विचार एवं संकलन जितेंद्र खुराना द्वारा किया गया है। )

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Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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