अनंत श्री विभूषित श्री ऋगवैदिय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधिश्वर श्रीमज्जगदगुरु शंकराचार्य भगवान के विद्या- कला- शिक्षा की उपयोगिता प्रवचन

अनंत श्री विभूषित श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधिश्वर श्रीमज्जगदगुरु शंकराचार्य भगवान के अमृतवचन :-

विद्या- कला- शिक्षा की उपयोगिता:-

पूजनीय पुरी शंकराचार्य जी ने अपनी धर्मसभा मे प्रवचन में शिक्षण संस्थानों के उद्देश्यों पर हिन्दू समाज को जगाने वाला संदेश दिया।

“महाभारत में शिक्षण संस्थान दिशाहीन न हों, इसके लिए एक दिव्य संदेश दिया है भीष्म जी ने- ” आजीजिविषवो विद्याम् , यश: कामौसमन्तत: ते सर्वे नृप पापिष्ठा: धर्मस्य परिपन्थिन: ।”

यहां शिक्षण संस्थान के जो प्रबुद्ध महानुभाव हैं प्राध्यापक हैं, संचालक हैं, वे अच्छी प्रकार ध्यान देकर सुनें । इस कसौटी पर विश्व के जितने शिक्षण संस्थान हैं उन्हें कसने का प्रयास करें ।

भीष्मजी ने कहा- ” आजीजिविषवो विद्याम् , यश: कामौसमन्तत: ते सर्वे नृप पापिष्ठा: धर्मस्य परिपन्थिन:” । जो अपनी विद्या का, कला का उपयोग और विनियोग केवल अर्थ और काम के लिए करते हैं, धन और मान ही जिनके जीवन का लक्ष्य होता है, उसकी पूर्ति के लिए अपनी विद्या और कला का विनियोग करते हैं, “ते सर्वे पापिष्ठा: ” – वे अव्वल दर्जे के पापी हैं । “धर्मस्य परिपन्थिन:” धर्मद्रोही हैं ।

इस कसौटी पर कसें तो विश्व के अधिकांश शिक्षण संस्थान और शिक्षित व्यक्ति धर्मद्रोही सिद्ध होते हैं । इसलिए सावधान ! पुरे विश्व में और शिक्षा जगत में स्वस्थ क्रान्ति के लिए भीष्मजी ने जो दृष्टिकोण प्रदान किया उसे समझने और क्रियान्वित करने की आवश्यकता है । हम अपनी विद्या का, कला का, शिक्षा का केवल धन और मान के लिए उपयोग न करें । तब हमारा जीवन मानवोचित शील से संपन्न हो सकता है और आधिभौतिक , आध्यात्मिक और आधिदैविक धरातल पर हमारा समग्र विकास हो सकता है ।

हर हर महादेव ।
हर हर शंकर जय जय शंकर ।

Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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