ईश्वरीय वाणी वेदों का आर्यों अर्थात हिंदुओं को आदेश-शत्रु के प्राण, आयु और तेज को हर लो, ऐसी विजय प्राप्त करो।

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सनातन वैदिक धर्म के 28वें वेद व्यास भगवान महाऋषि श्रीकृष्ण द्वैपायन जी ने संकलित कर वेदों का वर्तमान स्वरूप हमें दिया। 28वें वेद व्यास भगवान महाऋषि श्रीकृष्ण द्वैपायन भगवान विष्णु के 21वें अवतार हैं।

ईश्वरीय वाणी वेद सनातन हिन्दू समाज के सर्वोच्च मान्य धर्मग्रंथ हैं। ईश्वरीय वाणी वेद साक्षात मोक्ष का मार्ग है और वेदों की अवज्ञा अर्थात वेदों से दूर होना व वेदों की बात ना मानना ही सम्पूर्ण कष्ट का कारण है। इन आदेशों का पालन न करने वाला मनुष्य इस जन्म में कष्ट एवं अगले जन्म में मनुष्य से हीन योनी में जन्म लेता है।

पड़िए, मन मस्तिष्क में धारण करिये और अपने सभी मित्रों के मानसिक निर्माण और उत्थान के लिए उन्हे भी भेजें।

इतो जयेते वि जय, संजय जय स्वाहा।

अथर्ववेद 8.8.24

इधर विजय पा, उधर विजय पा, प्रचंड विजय पा, सर्वत्र जीत ही जीत हो, ऐसी प्रतिज्ञा कर।

जितमस्मा कमुभ्दिन्न मस्काकमभ्यष्ठां विश्वाः पृतना अरातीः।

इदमहमामुष्यायणस्याsमुष्याः पुत्रस्य वर्चस्तेजः प्राणमायुर्निवेष्टयामि।

इदमेन मधराच पादयामि॥

अथर्ववेद 10.5.36

विश्वास रखो। हमारी ही विजय होगी, हमारा अभ्युदय होगा। शत्रु की सेना को हम परास्त करेंगे। मुझसे शत्रुता रखने वाले किसी के भी बेटा या बेटी हो, मैं उसके वर्चस्व को, तेज को, प्राण और आयु को हर लूँगा। उसे पृथिवी पर दे मारूँगा। अर्थात शत्रु को सब प्रकार से तहस नहस कर दूँगा।

प्रेता जयता नर इन्द्रो वः शर्म यच्छ्तु।

उग्रा वः सन्तु वहवोsनाधृष्या यथासथ॥

ऋगवेद 10.103.13, यजुर्वेद 17.46, अथर्ववेद 3.19.7

हे योद्धाओं, तुम प्रस्थान करो और विजय लाभ करो। परमात्मा तुम्हारा कल्याण करे। तुम्हारी भुजाएँ प्रचंड बल वाली सिद्ध हों ताकि तुम विजयी हो।

अप त्यं परि पंथिनं मुषीवाणं हुरश्चितम्।

दूरमधि सुतेरज॥

ऋगवेद 1.42.3

जो कोई चोर, कुटिल, पापी, दुष्ट तेरे मार्ग में रास्ता रोक कर खड़ा हो, उसे तू पकड़ कर रास्ते से दूर फेंक दे। अर्थात पराक्रमी पुरुष विघ्न-बाधाओं को दूर कर निर्दिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करें।

अभिभूररहमागमं विश्वकर्मेण धाम्ना।

आ वश्चित्तमा वो व्रत मा वोsहं समितिं ददे॥

ऋगवेद 10.166.4

ओ मुझसे शत्रुता करने वालों, सावधान। देखो मैं अपने सब कार्य क्षेम तेज के साथ आ पंहुचा हूँ। तुमने जो मेरे विनाश के बड़े बड़े विचार बना रखे हैं, जो बड़े बड़े षड्यंत्र रच रखे हैं, जो संघ समितियाँ बना रखी हैं, मैं अभी उन सभी को अपनी मुट्ठी में किए लेता हूँ।

नहि त्वा शूरो न तुरो न  धृष्णुर्न त्वा योधो मन्यमानो युयोध।

इन्द्र नकिष्ट्वा प्रत्यस्त्येषां विश्वा जातान्यभ्यसि तानि॥

ऋगवेद 6.25.5

हे वीर, बड़े से बड़ा शूरवीर, बड़े से बड़ा फुर्तीला, बड़े से बड़ा विजेता, बड़े से बड़ा अभिमानी योद्धा, युद्ध में तेरी बराबरी नहीं कर सकता है। किसी में भी तुझे परास्त करने की शक्ति नहीं है। तू सबको परास्त कर सकता है। अर्थात विश्वास रखो तुममें असीम शक्ति छिपी हुई है।

जहि त्वं काम मम ये सपत्ना अन्धा तमांस्यव पादयैनान्।

निरिन्द्रिया अरसाः सन्तु सर्वे मा ते जीविषुः कतमच्चनाहः॥

अथर्ववेद 9.2.10

जाग, जाग, ओ मेरे संकल्प बल जाग, तू मेरे शत्रुओं को मार गिरा। उन्हे घोर अंधकार में धकेल दे। वे सब आततायी निरिन्द्रिय और निस्तेज हो जाएँ। वे एक दिन को भी जीवित न बचें। अर्थात हे मनुष्यों, तुम अपने आत्मविश्वास को इतना दृड़ बनाओ जिससे तुम अपने भीतरी और बाहरी शत्रुओं को जीत सको और सुरक्षित होकर अपने राष्ट्र में रह सको।

(उपरोक्त सभी मंत्र डा० कृष्णवल्लभ पालीवाल द्वारा लिखित पुस्तक वेदों द्वारा सफल जीवन से लिए गए हैं। श्री पालीवाल जी ने वेदों के मंत्र महाऋषि दयानन्द सरस्वती , पंडित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर, पंडित रामनाथ वेदालंकार एवं डा० कपिल द्विवेदी आदि वेद विद्वानों के वेद भाष्यों से लिए हैं। शीघ्र ही यह पुस्तक यहाँ ऑनलाइन खरीदने के लिए भी उपलब्थ होगी।


सम्पादन-जितेंद्र खुराना

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Jitender Khurana

जितेंद्र खुराना HinduManifesto.com के संस्थापक हैं। Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. www.HinduManifesto.com does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article.

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